🔱 श्री बजरंग बाण 🔱
बजरंग बाण केवल एक स्तोत्र नहीं है, यह एक आग्रह है, आह्वान है, और आत्मा की पुकार है—जो भगवान हनुमान से तुरंत सहायता और रक्षा की याचना करता है। यह प्रार्थना उन कठिन क्षणों में की जाती है, जब भक्त संकट, भय, बुरे प्रभाव या नकारात्मक शक्तियों से घिरा होता है।बजरंग बाण में विनती नहीं, आदेश होता है — वह भी पूर्ण विश्वास और समर्पण के साथ। यह हनुमान जी को युद्ध के मैदान में बुलाने जैसा है। इसलिए इसे केवल शुद्ध मन, सच्चे उद्देश्य और पूर्ण श्रद्धा से ही पढ़ा जाना चाहिए।
“बजरंग” शब्द स्वयं भगवान हनुमान का पर्याय है, और “बाण” का अर्थ है तीर। यानी, बजरंग बाण का तात्पर्य है हनुमान जी का दिव्य तीर, जो सीधे असुरी और नकारात्मक शक्तियों पर प्रहार करता है।
यह स्तोत्र हनुमान चालीसा से अधिक प्रभावशाली और उग्र है। जहां चालीसा शांत भाव से स्तुति करती है, वहीं बजरंग बाण में रणनाद है — यह आपदा के समय श्री हनुमान को युद्ध में बुलाने जैसा है।
🔹 बजरंग बाण पाठ की विधि 🔹
📿 सर्वश्रेष्ठ दिन: मंगलवार और शनिवार
📿 समय: सुबह या संध्या समय
📿 कैसे करें?
1️⃣ श्री हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
2️⃣ घी का दीपक जलाएं और चंदन, फूल, गुड़-चने का भोग लगाएं।
3️⃣ पहले हनुमान चालीसा का पाठ करें।
4️⃣ फिर बजरंग बाण का पाठ करें।
5️⃣ अंत में हनुमान आरती करें।
🕉 विशेष उपाय:
- यदि किसी को बहुत अधिक शत्रु बाधा या भय हो, तो 21 दिनों तक बजरंग बाण का पाठ करें।
- हनुमान जी को लाल सिंदूर, चमेली का तेल और गुड़-चना अर्पित करें।
🔥 “जय बजरंग बली!” 🔥
॥ दोहा ॥
निश्चय प्रेम प्रतीति ते,बिनय करै सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करै हनुमान॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमन्त सन्त हितकारी।सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै।आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा।सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका।मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु महं बोरा।अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा।लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई।जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी।कृपा करहुं उर अन्तर्यामी॥
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता।आतुर होइ दु:ख करहुं निपाता॥
जय गिरिधर जय जय सुख सागर।सुर समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले।बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥
गदा बज्र लै बैरिहिं मारो।महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो।बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा।ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होउ हरि शपथ पायके।रामदूत धरु मारु धाय के॥
जय जय जय हनुमन्त अगाधा।दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा।नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं।तुमरे बल हम डरपत नाहीं॥
पाय परौं कर जोरि मनावों।यह अवसर अब केहि गोहरावों॥
जय अंजनि कुमार बलवन्ता।शंकर सुवन धीर हनुमन्ता॥
बदन कराल काल कुल घालक।राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत प्रेत पिशाच निशाचर।अग्नि बैताल काल मारीमर॥
इन्हें मारु तोहि शपथ राम की।राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि दास कहावो।ताकी शपथ विलम्ब न लावो॥
जय जय जय धुनि होत अकाशा।सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा॥
चरण शरण करि जोरि मनावों।यहि अवसर अब केहि गोहरावों॥
उठु उठु चलु तोहिं राम दुहाई।पांय परौं कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता।ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥
ॐ हं हं हांक देत कपि चञ्चल।ॐ सं सं सहम पराने खल दल॥
अपने जन को तुरत उबारो।सुमिरत होय आनन्द हमारो॥
यहि बजरंग बाण जेहि मारो।ताहि कहो फिर कौन उबारो॥
पाठ करै बजरंग बाण की।हनुमत रक्षा करै प्राण की॥
यह बजरंग बाण जो जापै।तेहि ते भूत प्रेत सब कांपे॥
धूप देय अरु जपै हमेशा।ताके तन नहिं रहे कलेशा॥
॥ दोहा ॥
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै,सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करै हनुमान॥
रचना और स्वरूप
बजरंग बाण की रचना किसने की, यह स्पष्ट नहीं है, परंतु माना जाता है कि यह एक गहरे भक्तिभाव से ओतप्रोत रचना है। इसमें श्री राम का स्मरण करते हुए हनुमान जी को त्वरित सहायता हेतु बुलाया जाता है।
इसमें हनुमान जी की गदा, उनके तेज, उनकी वानर सेना और उनके उग्र रूप का आवाहन किया गया है — जो भक्त की रक्षा करते हैं और भय तथा संकट को नष्ट करते हैं।
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