एक कुत्ते ने बचाई सैंकड़ों जाने |
“जाको राखे साइयां, मार सके न कोय” —
कहते हैं जब भगवान किसी की रक्षा करने का निश्चय कर लेते हैं, तो वह अपने किसी भी रूप में मदद भेज सकते हैं। ऐसी ही एक सच्ची और दिल छू लेने वाली घटना सामने आई है हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से।
हिमाचल इन दिनों बादल फटने और फ्लैश फ्लड की घटनाओं से जूझ रहा है। ऊपरी क्षेत्रों में रहने वाले लोग दहशत में हैं और हालात हर दिन बिगड़ते जा रहे हैं। लेकिन इस अंधेरे समय में, एक पालतू कुत्ते ने गांव के 67 लोगों की जान बचाकर यह साबित कर दिया कि भगवान की कृपा जब होती है, तो चमत्कार जरूर होता है।
मंडी जिले के एक छोटे से गांव में रात के समय सभी ग्रामीण गहरी नींद में सोए हुए थे। अचानक आधी रात को एक पालतू कुत्ता जोर-जोर से भौंकने लगा — लेकिन इस बार उसका भौंकना सामान्य नहीं था। वह जैसे किसी अनहोनी को भांप गया हो। उसका व्यवहार इतना विचित्र था कि उसके मालिक की नींद टूट गई।
मालिक ने जैसे ही दरवाज़ा खोला, देखा कि पानी और कीचड़ का तेज बहाव उनके आंगन में घुस चुका है और घर डूबने की कगार पर है। वह तुरंत समझ गया कि कुछ बहुत बड़ा खतरा गांव पर मंडरा रहा है।
उसने पहले अपने घरवालों को उठाया, फिर पूरे गांव में जाकर सबको जगाया। सब लोग तेजी से एक सुरक्षित ऊंचे स्थान की ओर भागे। कुछ ही देर में गांव का निचला हिस्सा पूरी तरह बाढ़ की चपेट में आ गया। अगर वह कुछ मिनट देर करता, तो गांव में बहुत बड़ा हादसा हो सकता था।
कहते हैं — “जाको राखे साइयां, मार सके न कोय” — और इस घटना ने इस कहावत को फिर से सच कर दिखाया।
इस गांव के लिए वह पालतू कुत्ता किसी देवदूत से कम नहीं था — शायद खुद भैरव नाथ जी का भेजा हुआ दूत।
आज गांव के लोग उस कुत्ते को सिर्फ एक जानवर नहीं, बल्कि अपने रक्षक के रूप में पूजते हैं। यह कहानी हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी भगवान हमारी मदद के लिए उन रास्तों से आते हैं, जिनकी हमने कल्पना भी नहीं की होती।
दीवार में आई दरार और फिर कुत्ते ने बचाई जान
इस पूरी घटना के बारे में नरेंद्र ने बताया कि रात में अचानक उसके पालतू कुत्ते की अजीब आवाज सुनकर उसकी नींद खुल गई। जब वह उठकर कुत्ते के पास गया, तो देखा कि घर की दीवार में बड़ी दरार आ चुकी है और पानी अंदर घुसने लगा है। हालात को भांपते हुए नरेंद्र ने बिना एक पल गंवाए अपने कुत्ते को उठाया और घर से बाहर की ओर दौड़ पड़ा।
उसने पहले अपने परिवार को बाहर निकाला और फिर पूरे गांव को जगाना शुरू कर दिया। उसकी सतर्कता की वजह से गांव के करीब 20 परिवारों के 67 लोग समय रहते घर छोड़कर सुरक्षित स्थान की ओर भाग निकले। सभी ने अपना सब कुछ पीछे छोड़ दिया — सिर्फ जान बचाने के लिए।
कुछ ही मिनटों में उजड़ गया सियाठी गांव
लोग जैसे-तैसे जान बचाकर बाहर निकले ही थे कि कुछ ही मिनटों बाद भयानक भूस्खलन हुआ। तेज़ बारिश की वजह से एक के बाद एक घर मिट्टी में समा गया। सियाठी गांव में लगभग 12 घर पूरी तरह मलबे में तब्दील हो गए। अब गांव में सिर्फ चार-पांच मकान ही सुरक्षित बचे हैं, बाकी सभी ज़मीन में दब चुके हैं।
बचे हुए ग्रामीण पास के त्रियंबला गांव के नैना देवी मंदिर में पिछले 7 दिनों से शरण लिए हुए हैं।
दर्द, डर और बीमारी – त्रासदी के बाद की जिंदगी
अब गांव में सिर्फ मलबा, सन्नाटा और आंखों में आंसू बचे हैं। जो लोग बच निकले हैं, वे अब भय, मानसिक तनाव और अवसाद से जूझ रहे हैं। कई लोगों को ब्लड प्रेशर की शिकायत हो रही है। खाने-पीने, रहने और इलाज की हालत बेहद खराब है।
आसपास के गांवों से लोग मदद पहुंचा रहे हैं। सरकार की तरफ से अब तक केवल ₹10,000 की राहत राशि दी गई है।
मानसून ने अब तक 78 लोगों की ली जान
हिमाचल प्रदेश में 20 जून से शुरू हुए मानसून ने अब तक 78 लोगों की जान ले ली है। इनमें से 50 मौतें बादल फटने, भूस्खलन और फ्लैश फ्लड जैसी प्राकृतिक आपदाओं में हुई हैं। वहीं 28 लोग सड़क हादसों में मारे गए हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने सोमवार को राज्य के 10 जिलों में अचानक बाढ़ की चेतावनी जारी की है। प्रशासन को अलर्ट पर रखा गया है, लेकिन लगातार बारिश के चलते राहत और बचाव कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।
प्रकृति की चेतावनी या हमारी लापरवाही?
हर साल आने वाली ये आपदाएं एक बड़ा सवाल छोड़ जाती हैं —
क्या हम अब भी समय रहते सुरक्षा व्यवस्था, गांवों की बसावट, और भविष्य की तैयारी को लेकर गंभीर नहीं हो पाए हैं?
या फिर हर बार किसी कुत्ते की चेतावनी पर ही हमारी जान बचती रहेगी?